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![Romana Manpreet and Global Alliance for Clean Cookstoves](http://blogs.worldbank.org/endpovertyinsouthasia/files/endpovertyinsouthasia/india-credit-romana-manpreet-and-global-alliance-for-clean-cookstoves.png)
यह एक सच्चाई है: लकड़ी, चारकोल, कोयले, गोबर के उपलों और फसल के बचे हुए हिस्सों सहित ठोस जलावन (सॉलिड फ्यूल) की खुली आग और पारंपरिक चूल्हों में खाना पकाने से घर के भीतर होने वाला वायु प्रदूषण दुनिया में, हृदय और फेफड़ों की बीमारी और सांस के संक्रमण के बाद मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है।
लगभग 290 करोड़ लोग, जिनमें से ज़्यादातर महिलाएँ हैं, अभी भी गंदगी, धुआँ और कालिख- पैदा करने वाले चूल्हों और ठोस जलावन से खाना पकाती हें। हालत यह है कि इतने ज़्यादा लोग इन खतरनाक उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो भारत और चीन की कुल आबादी से भी ज़्यादा हैं।
इसे बदलने की जरूरत है। और बदलाव हो रहा है जैसा कि मैंने पिछले सप्ताह में एक्रा, घाना में संपन्न क्लीन कुकिंग फोरम 2015की कई बातचीतों को सुना। घाना के पेट्रोलियम मंत्री और महिला व विकास उपमंत्री की बात सुनकर, मुझे अहसास हुआ कि सर्वाधिक जरूरतमंद परिवारों को स्वच्छ चूल्हे व स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने की गहरी इच्छा निश्चित रूप से यहाँ मौजूद है। लेकिन इच्छाओं को सच्चाई में बदलना एक चुनौती है। यह बात न केवल घाना में बल्कि दुनिया के कई हिस्सों के लिए भी सही है।
बाद में मैंने इस बारे में काफी सोचा खास तौर पर जब हमने पेरिस में होने वाली जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस (सीओपी21) पर ध्यान दिया जहाँ दुनिया के नेता जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव कम करने के वैश्विक समझौते पर सहमति बनाने के लिए इकट्ठा होंगे। उस लक्ष्य तक पहुंचने की एक महत्वपूर्ण कुंजी ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों को अपनाना भी है। इस लिहाज से, संयुक्त राष्ट्र संघ का सस्टेनेबल एनर्जी गोल (एसडीजी7)का एक मकसद - किफायती, भरोसेमंद, वहनीय (सस्टेनेबिल) और आधुनिक ऊर्जा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना - यह भी है कि ऐसे 290 करोड़ लोगों तक खाना पकाने के स्वच्छ समाधान पहुंचाएँ जाएँ, जो आज उनके पास नहीं हैं।